यहाँ हर घर में है एक नक्सली


लालगढ़ ऑपरेशन आखिरकार नाकामयाब साबित हुआ । ऐसा मानना है पश्चिम बंगाल सरकार का । १८ जून को लालगढ़ में केंद्रीय फाॅर्स और राज्य पुलिस के संयुक्ता अभियान ने नक्सालियों के खिलाफ एक जबरदस्त मोर्चा खोला था । मओवादिओं के लिबेरेटेद ज़ोन से लोगों को आजाद कराने की ये शानदार पहल थी । पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकत्ता से महज १५० किलोमीटर दूर स्थित लालगढ़ के पुलिस स्टेशन पर महीनो से ताले पड़े थे ,सरकारी अमला लगभग पुरे वेस्ट मिदनापुर इलाके से भाग खड़े हुए थे । पश्चिम बंगाल सरकार त्राहिमाम संदेश लगातार केन्द्र को भेज रही थी । रॉयटर्स बिल्डिंग में पिछले ३० सालों से जड़ जमा चुके वाम दल की सरकार को यह एहसास हो गया था कि नक्सालियों का अगला मुकाम कोलकत्ता ही है । ख़ुद केंद्रीय गृह मंत्री इस अभियान का नेतृत्वा कर रहे थे । तक़रीबन २० हजार फाॅर्स नक्सालियों के किलेबंदी को तोड़ने के लिए लगे हुए थे । इस अभियान में तक़रीबन १००० गाँव में पैर पसार चुके नक्सालियों को खदेरने की पुरी रणनीति दिल्ली में बनाई गई थी । कह सकते है कि मुल्क के ८० जिलों में अपना मजबूत आधार बना चुके नक्सालियों के लिए यह एक संदेश था कि उनका दिन अब लदने वाला है । लेकिन ऐसा नही हुआ । पुरे अभियान में फाॅर्स के विरोध के लिए जनता खड़ी रही और नाक्साली पीछे से उनका नेतृत्वा करते रहे । पुरे अभियान में एक भी नाक्साली कमांडर पकड़े नही गए ,नही नक्सालियों कोई नुकसान उठाना पड़ा । कहा गया कि नाक्साली मैदान छोड़ चुके है । केन्द्र सरकार इसे बड़ी कामयाबी मान रही थी । लेकिन इन इलाकों में एक के बाद एक वाम दल के कार्यकर्ताओं की मौत ने यह साबित कर दिया कि सरकार का यह दावा ग़लत था । पश्मिम बंगाल सरकार अपने १९ कार्यकर्ताओं की मौत से इस कदर आहात है कि उसने पुरे ऑपरेशन पर ही सवाल उठा दिया है । जाहिर है कार्यकर्ताओं के भरोसे हुकूमत चलाने वाली वाम दल सरकार को यह यकीं हो चला है कि आम लोगों का उनसे भरोसा उठ चुका है । जाहिर है इस भरोसे को माओवादियों ने जीता है यही वजह है कि नक्सल प्रभावित इलाकों में हुकूमत को कोई खुफिया जानकारी मिलना मुश्किल है । यानि नक्सल के इस तथाकथित क्रान्ति में सीधे तौर पर आम लोगों का सहयोग है । ऐसा क्यों हुआ इसका जवाब ३० साल से पश्मिम बंगाल में शाशन करने वाली सरकार ही दे सकती है ।
नक्सल प्रभावित ७ राज्यों में छतीसगढ़ सबसे अधिक नक्सालियों के दंश को झेल रहा है । बस्तर रेजिओन की बात करे तो यह केरला और हरियाणा के आकर से भी बड़ा है ,लेकिन वर्षों से यह उपेक्षा का शिकार है । राज्य सरकार ख़ुद से नक्सालियों को परास्त कर नही सकती और केन्द्र सरकार सी आर पी ऍफ़ के १४ बटालियन भेज कर अपनी जिम्मेवारियों से मुक्त होना चाहती है । आज नक्सल उन राज्यों में ज्यादा सक्रिय है जहाँ विपक्षी दलों की सरकार है । कांग्रेस की केंद्रीय सरकार उन्हें आंध्र प्रदेश की सरकार का हवाला देती है । लेकिन सवाल यह है कि केन्द्र ने जो तत्परता आन्ध्र प्रदेश के लिए दिखाई है क्या वही गंभीरता दुसरे राज्यों के लिए दिखाई है । अगर आंध्र का मॉडल उपयुक्त है तो उसे महाराष्ट्र के गढ़चिरौली मे क्यों नही अपनाया जाता ।
सियासत को अगर थोडी देर के लिए परे रख दे तो नक्सालियों के इस विस्तार का कारण सिर्फ़ मुल्क की लाल फीता शाही है । पश्मिम बंगाल हो या बिहार , झारखण्ड हो छत्तीसगढ़ या फ़िर उड़ीसा । हर पिछडे इलाके मे नक्सालियों को आधार मजबूत बनाने में हमारी लाल फीताशाही ही जिम्मेवार है ।
पहली बार बीजापुर के जिला कलेक्टर के आर पिस्दा ने लाल फीताशाही को नकार कर गंगालूर से बीजापुर के बीच २३ किलो मीटर रोड को आर सी सी रोड बनाने का निर्णय लिया १० करोड़ रूपये की लागत से बनने वाली इस सीमेंट रोड का सबसे ज्यादा विरोध नक्सालियों ने किया था । इस रोड पर नक्सालियों के लैंड माइन कामयाब नही हो सकते थे । बीजापुर के नक्सल कमांडर हरी राम ने प्रशाशन को खुली चुनौती दी थी । लेकिन प्रशाशन ने पुरी दृढ़ इच्छाशक्ति से इस रोड का काम पुरा करबाया। इस रोड के तामीर होने के दौरान १० से ज्यादा पुलिस कर्मी मारे गए लेकिन प्रशाशन ने अपना कदम पीछे नही किया । कभी इन इलाकों में सड़क संपर्क नही होने के कारण पूरी आवादी नक्सालियों के गुलाम थे लेकिन इस रोड ने इलाके की तस्वीर बदल दी है ।
इस साल नाक्साली हमलों में २५० से ज्यादा सुरक्षवल मारे गए है । इनमे से ज्यादा की मौत नक्सालियों के माइन ब्लास्ट से ही हुई है । बीजापुर -गंगालूर का यह रोड हुकूमत के लिए आइना है । केन्द्र सरकार नक्सल प्रभावित राज्यों में सेना मुख्यालय बनाने पर विचार कर रही है । केन्द्र सरकार लालगढ़ की तर्ज पर नक्सालियों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन लांच करने की बात कर रही है लेकिन इस अभियान को हर गली नुक्कडों पर लैंड माइन का सामना करना होगा और खुफिया जानकारी के नाम पर यहाँ इन्हे कुछ भी मिलने वाला नही है । सिर्फ़ पुलिस आधुनिकीकरण के नाम पर करोड़ों रूपये हर वर्ष खर्च किए जा रहे है ,लेकिन नक्सालियों के एक माइन ब्लास्ट में एस पी समेत ३४ पुलिस कर्मी मारे जाते है । यह नक्सालियों के ख़िलाफ़ ऑपरेशन का सच है । सवाल यह है कि नेशनल मिनिरल डेवेलोपमेंट कारपोरेशन से महज १० करोड़ रूपये पाकर जिला कलेक्टर २३ कि मीटर माइन फ्री रोड बना सकता है तो विभिन् खनिज इलाके में ऐसी सडके क्यों नही बनाई जा सकती । देश के ३० फीसद खनिज इलाके में नक्सालियों का कब्जा है इन इलाकों में निवेश को प्रोत्साहित करने से पहले बुनियादी सुविधा बहाल करने की जरूरत है । नही तो हरबार हम लालगढ़ की तर्ज पर कोई ऑपरेशन लॉन्च करेंगे और हर बार हम नाकामयाब साबित होंगे । ये अलग बात है कि अगर हम अमेरिका से द्रोन हाशिल करले तो बगैर किसी बुनियाद के हम नक्सालियों का सफाया कर सकते है । लेकिन यह न तो हम वजीरिस्तान है और न ही यह ऑपरेशन पाकिस्तानी फौज चला रही है ।

टिप्पणियाँ

समयचक्र ने कहा…
सही कथन विचारणीय आलेख ...

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