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बड़े सम्पादको के लिए बहार है, अब न तो अखबार ढूढ़ने का संकट है न ही पाठक

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आज हर कोई सुनाने को बेताब है। हर के पास सवाल है लेकिन न तो कोई सुनने के लिए तैयार है न किसी के पास  जवाब लेने का धैर्य। मैं ऐसे नामचीन एडिटरों को जानता हूँ जो अपने व्यवसायिक दायित्व के बाद  रात दिन सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं। मैं ऐसे लोगों को भी जानता हूँ जो दिन में 20 -25 ट्वीट और अपने सद्विचार सोशल मीडिया पर डालते हैं। आखिर ज्ञान की वर्षा इनदिनों क्यों तेज हो गयी है ?शायद इसलिए कि देश में बेरोजगारी बढ़ गयी है या फिर इसलिए कि गरीब की बीबी गांव की भौजाई। पेड और अनपेड सेनानियों की फ़ौज किसी को भक्त बताकर तो किसी को राष्ट्रवादी गैंग  बताकर अपनी अहमियत को साबित करना चाहती है। इनके ट्वीट  या न्यूज़ फीड पर ट्रोल ही इनका सोशल मीडिया पर टी आर पी है। कह सकते हैं जिसका जितना ट्रोल उतना इनाम। यानी  न्यू मीडिया के दौर में कई नामी गिरामी संपादक आज अपने पाठक के पत्र नहीं ढूंढ रहे हैं बल्कि उनका ध्यान इस और होता है कि उनके सत्यवचन पर कितनी तीखी प्रतिक्रिया हुई  है। बड़े सम्पादको के लिए बहार है, अब न तो अखबार ढूढ़ने का संकट है न ही पाठक। एक घंटे के अंदर वेबसाइट खोलकर  पर बड़े  सम्पादक अपने सम्पादकीय